
आत्मनिर्भरता – Self Reliance Meaning
दोस्तों आत्मनिर्भरता (Self Reliance Meaning) जीवन में नितांत आवश्यक है। मनुष्य को छोड़कर प्रत्येक जीव जन्म के कुछ समय बाद ही आत्मनिर्भर हो जाते है। प्रत्येक जीव को उसके माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्य आत्मनिर्भर होना सिखाते है। आत्मनिर्भर व्यक्ति जीवन में प्रत्येक समस्या का समाधान खोज लेता है। व्यक्ति यदि आत्मनिर्भर नहीं होता है तो उसे कई समस्या का सामना करना पड़ता है।
पशुओं में आत्मनिर्भरता
एक बिल्ली अपने बच्चे को जन्म के बाद एक पल भी अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देती है। वह अपने बच्चे के लिए भोजन की व्यवस्था करती है एवं उसकी पूरी सुरक्षा करती है। सुरक्षा के लिए वह अपने मुँह से बच्चे को उठाकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है। थोड़ा बड़ा होने पर वह स्वयं ही उसे शिकार करना सिखाती है। जब उसे लगता है कि उसका बच्चा स्वयं शिकार कर सकता है तो वह उसे छोड़कर कहीं और चली जाती है।
इसी तरह गाय भी अपने बछड़े को बहुत दुलार करती है। उसका पालक अपने स्वार्थ के लिए पूरा दूध दुहता है। गाय उसके बाद भी अपने आँचल में बछड़े के लिए दूध सुरक्षित रखती है। बछड़े को चोंट लगने पर जीभ से घाव को साफ़ करती है। कुछ समय बाद स्वयं की तरह हरी घास खाना सिखाती है। बाद में बछड़ा स्वयं ही अपना पेट भर लेता है।
इंसानों में आत्मनिर्भरता –
कहने का तात्पर्य है कि ईश्वर और प्रकृति प्रत्येक प्राणी को आत्मनिर्भर बनाते है। मनुष्य के मामले में थोड़ा अपवाद है। जन्म से लेकर लगभग 5 वर्ष तक वह अपनी माँ के आँचल की छाँव में रहता है। लगभग 10 वर्ष की आयु तक माता-पिता दोनों का दुलारा होता है। 10 से किशोरावस्था आने तक भी वह अपने माता-पिता पर ही निर्भर रहता है।
लम्बे समय तक माता-पिता और परिजनों पर निर्भर रहने के कारण उसमे आत्मबल की कमी हो जाती है। किशोरावस्था के बाद जब वह युवावस्था में प्रवेश करता है तो आत्मबल और आत्मनिर्भरता की अत्यंत आवश्यकता पड़ती है।
माता-पिता का कर्तव्य – Self Reliance Meaning
माता-पिता को चाहिए कि वह बालक को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करें। बालक को हमेशा दुखों से बचाना और किसी प्रकार की भी तकलीफ नहीं होने देना माता-पिता का लक्ष्य होता है। ऐसे वातावरण में बालक का समुचित विकास नहीं होता है। बालक में आत्मविश्वाश और आत्मनिर्भरता नहीं आती है। यदि किसी कारण माता-पिता उसका ख्याल ना रख पाए तो उसे कई समस्यों का सामना करना पड़ता है।
अतएव माता-पिता को बचपन से ही बालक को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करना चाहिए। उसे अपने छोटे – छोटे काम स्वयं ही करने देना चाहिए। सुबह की चाय बनाने के आदत डालना। स्वयं के लिए खाना परोसना, भोजन के बाद थाली को उठाकर रखने की आदत डालना। जहाँ भोजन किया है वह जगह साफ़ करने की आदत डालना चाहिए। बालक को अपना स्कूल बेग स्वयं ही तैयार करना चाहिए। स्वयं ही तैयार होना चाहिए एवं जूते भी स्वयं ही पहनने चाहिए।
आप कहेंगे कि बच्चा यह सब स्वयं ही करेगा तो माता-पिता क्या करेंगे। माता-पिता यह सब काम सिखाकर अपने बालक को मजबूत बनाने का काम करेंगे। ताकि बालक आत्मनिर्भर बन सके और उसमे काम के प्रति लगन पैदा हो। यदि ऐसा हो जाता है तो माता-पिता का वास्तविक मकसद पूरा हो जाता है। जब बालक जीवन जीने की कला सिख जाता है तो भविष्य में वह किसी पर भी निर्भर नहीं रहेगा।
भारतीय गुरुकुल संस्कृति में (Self Reliance) इसी बात पर जोर दिया जाता था। चाहे वह राजा का बालक हो या साधारण व्यक्ति का बालक हो उसे गुरुकुल में रहकर आत्मनिर्भर बनाया जाता था। ताकि वह जीवन मूल्य और कर्तव्यों को भलीभाँति समझ सके।
उपनिवेशकाल के दौरान हमारी संस्कृति में परिवर्तन हुए । परिवर्तन जीवन का नियम है परन्तु जीवन मूल्य कभी नहीं बदलना चाहिए।
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