
Jeevan Me Paiso ka Mahatv – पैसे की यह दुनिया है पैसे का जमाना है
दोस्तों आज के जीवन में पैसों के महत्व (पैसे की यह दुनिया है पैसे का जमाना है) को किसी के भी द्वारा नाकारा नहीं जा सकता है। आप सोचेगें कि मैं, ‘आज के जीवन में पैसों का महत्व’ ऐसा क्यों लिख रहा हूँ। तो ऐसा इसलिए की आज कर्म के परिणाम को पैसों के रूप में देखा जाने लगा है। आज व्यक्ति सफल तब ही कहलाता है जब उसके पास में पैसा हो। चाहे उसके लिए व्यक्ति को अपने मूल स्वाभाव को ही भूलना क्यों ना पड़े।
आज के समय में पैसा कमाने के लिए व्यक्ति कई अनुचित तरीके भी अपनाता है। चाहे उसके लिए उसे किसी भी हद तक जाना ही क्यों ना पड़े। पैसा कमाने के लिए वह अपने मूल स्वाभाव शांति, प्रेम, पवित्रता, सच्चाई, सुख, शक्ति और परमानन्द को भूल जाता है। व्यक्ति के अनुसार सभी कर्मों का अंतिम उद्देश्य मात्रा पैसों की प्राप्ति है।
स्वाभाव अनुसार निःस्वार्थ कर्म
यदि व्यावहारिक लेन – देन में किसी भी प्रकार की मुद्रा का उपयोग होता है तो वह मुद्रा ही सर्वोपरि हो जाती है। प्राचीन समय में गायों को गौ माता कहा जाता था। उन्हें इसलिए पाला जाता था कि उनके दूध से पोषण प्राप्त होता था। उनके बछड़े बड़े होकर खेती का काम करते थे। आज गायों और भैंसो को पालने का मुख्य उद्देश्य पैसा प्राप्ति है क्योंकि लेन – देन पैसो में ही हो सकता है।
आप कहेंगे कि इसका मतलब हमें फिर से प्राचीन समय के अनुसार जीना चाहिए ? जी नहीं बिलकुल नहीं। मेरा यह उदाहरण देने के पीछे उद्देश्य है कि जीवन में हर किसी का अपना महत्व होता है। जिस तरह से एक गाय दूध और बछड़ा देकर अपना कर्तव्य पूरा करती है। ठीक उसी प्रकार एक व्यक्ति भी अपने निज स्वाभाव में रहकर अपना कर्तव्य करता है।
इस संसार में प्रत्येक जीव की एक अपनी विशेषता होती है। जल में रहने वाले पृथ्वी पर और पृथ्वी पर रहने वाले जल में नहीं रह सकते। आकाश में उड़ने वालों की भी अपनी सीमाएं और विशेषतायें होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी अपनी – अपनी क्षमता के अनुसार कर्म करते है। सभी जीव अपने – अपने क्षेत्र में सफल होते है।
जीवन में पैसा महत्वपूर्ण है या कर्म ? – Jeevan Me Paiso ka Mahatv
क्या वह बेजुबाँ जीव जो अपने बच्चों का लालन – पालन करते है और अपना कर्तव्य पूरा करते है सफल नहीं है ? संसार में ऐसा कोई जीव नहीं है जो अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है। तो क्या सबको पैसों की प्राप्ति होती है ? जो जीव निः स्वार्थ भाव से अपने कर्तव्य का पालन करता है क्या उसे किसी भी प्रकार की मुद्रा की आवश्यकता है ?
मनुष्य ही ऐसा एकमात्र प्राणी है जो यदि निःस्वार्थ भाव से कर्तव्य करें और पैसा प्राप्त ना हो तो असफल कहलाता है। इसलिए मैंने कहा कि ‘आज के समय में पैसों का महत्व’ बहुत ज्यादा है। निःस्वार्थ और लाभरहित कर्तव्य को पैसों ने ढक लिया है।
अधिकतर मनुष्य पुरे जीवन भर इसी आत्मग्लानि में जीते रहते है कि उनके पास पैसा नहीं है। अन्य लोगों के द्वारा भी उन्हें यही अहसास करवाया जाता है कि पैसा ही सबकुछ है। अधिक पैसा नहीं कमा पा रहे हो तो नाकारा हो। जिस तरह से एक बालक से उसकी क्षमता से अधिक अंक प्राप्त करने उम्मीद की जाती है, उसी तरह से एक व्यक्ति से भी क्षमता से अधिक पैसा कमाने की उम्मीद की जाती है।
अंत में एक ही प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि पैसों की अंधी दौड़ (पैसे की यह दुनिया है पैसे का जमाना है) में हम सब कब तक भागते रहेंगे। क्या हम निः स्वार्थ भाव से किये गए कर्त्तव्यों को महत्व नहीं दे सकते है ? यदि कोई व्यक्ति कर्म करता है और उसे मनपसंद सफलता नहीं मिलती है तो उसे पैसों के साथ क्यों तोला जाता है ? क्या हमें पैसों के बजाय कर्म को नहीं पूजना चाहिए ?
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